AN ORIGINAL IDEA. THAT CAN'T BE TOO HARD.THE LIBRARY MUST BE FULL OF THEM
STUDY AT HOME
- TEACHERS RESOURCE FOR LEARNING OUTCOMES
- LEARNING OUTCOMES AT ELEMENTARY STAGE
- ACADEMIC PLAN ASSESSMENT AND ITS IMPLEMENTATION AS PER NEP
- CBSE REVISED SYLLABUS (2021)
- ALTERNATIVE ACADEMIC CALENDER
- SPLIT-UP SYLLABUS 2020-21
- NCERT BOOKS(2020)
- DIKSHA APP
- NCERT SOLUTION-MATHS
- MY CBSE GUIDE
- NATIONAL EDUCATION POLICY 2020
- CBSE SAMPLE PAPER CLASS 10-2020
- KVS- STUDY MATERIAL X & XII
- CAREER & COUNSELING
- E-Books (Class 1& 2)
- E-Books (Class 3-5)
- CBSE SAMPLE PAPER-XII 2022-23
- CBSE SAMPLE PAPER- X 2022-23
- CBSE SYLLABUS 2022-23
- CBSE CURRICULAM 2023-24
Friday, August 28, 2020
Sunday, August 23, 2020
राष्ट्रीय कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान
जन्म 16 अगस्त 1904
इलाहाबाद, संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध, ब्रिटिश भारत
के प्रेसीडेंसी और प्रांत
मृत्यु 15 फ़रवरी 1948 (उम्र 43)
सिवनी, भारत।
व्यवसाय कवयित्री
भाषा हिन्दी
अवधि/काल 1904–1948
विधा कविता
जीवनसाथी ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान
सन्तान 5
उनका जन्म नागपंचमी के दिन इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गांव में रामनाथसिंह के जमींदार परिवार में हुआ था। बाल्यकाल से ही वे कविताएँ रचने लगी थीं। उनकी रचनाएँ राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान, चार बहने और दो भाई थे। उनके पिता ठाकुर रामनाथ सिंह शिक्षा के प्रेमी थे और उन्हीं की देख-रेख में उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी हुई। १९१९ में खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह के साथ विवाह के बाद वे जबलपुर आ गई थीं। १९२१ में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली वह प्रथम महिला थीं। वे दो बार जेल भी गई थीं।] सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनी, इनकी पुत्री, सुधा चौहान ने 'मिला तेज से तेज' नामक पुस्तक में लिखी है। इसे हंस प्रकाशन, इलाहाबाद ने प्रकाशित किया है। वे एक रचनाकार होने के साथ-साथ स्वाधीनता संग्राम की सेनानी भी थीं। डॉo मंगला अनुजा की पुस्तक सुभद्रा कुमारी चौहान उनके साहित्यिक व स्वाधीनता संघर्ष के जीवन पर प्रकाश डालती है। साथ ही स्वाधीनता आंदोलन में उनके कविता के जरिए नेतृत्व को भी रेखांकित करती है। १५ फरवरी १९४८ को एक कार दुर्घटना में उनका आकस्मिक निधन हो गया था।
कथा साहित्य
'बिखरे मोती' उनका पहला कहानी संग्रह है। इसमें भग्नावशेष, होली, पापीपेट, मंझलीरानी, परिवर्तन, दृष्टिकोण, कदम के फूल, किस्मत, मछुये की बेटी, एकादशी, आहुति, थाती, अमराई, अनुरोध, व ग्रामीणा कुल १५ कहानियां हैं! इन कहानियों की भाषा सरल बोलचाल की भाषा है! अधिकांश कहानियां नारी विमर्श पर केंद्रित हैं! उन्मादिनी शीर्षक से उनका दूसरा कथा संग्रह १९३४ में छपा। इस में उन्मादिनी, असमंजस, अभियुक्त, सोने की कंठी, नारी हृदय, पवित्र ईर्ष्या, अंगूठी की खोज, चढ़ा दिमाग, व वेश्या की लड़की कुल ९ कहानियां हैं। इन सब कहानियों का मुख्य स्वर पारिवारिक सामाजिक परिदृश्य ही है। 'सीधे साधे चित्र' सुभद्रा कुमारी चौहान का तीसरा व अंतिम कथा संग्रह है। इसमें कुल १४ कहानियां हैं। रूपा, कैलाशी नानी, बिआल्हा, कल्याणी, दो साथी, प्रोफेसर मित्रा, दुराचारी व मंगला - ८ कहानियों की कथावस्तु नारी प्रधान पारिवारिक सामाजिक समस्यायें हैं। हींगवाला, राही, तांगे वाला, एवं गुलाबसिंह कहानियां राष्ट्रीय विषयों पर आधारित हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान ने कुल ४६ कहानियां लिखी और अपनी व्यापक कथा दृष्टि से वे एक अति लोकप्रिय कथाकार के रूप में हिन्दी साहित्य जगत में सुप्रतिष्ठित हैं!
सम्मान
भारतीय तटरक्षक सेना ने २८ अप्रैल २००६ को सुभद्राकुमारी चौहान की राष्ट्रप्रेम की भावना को सम्मानित करने के लिए नए नियुक्त एक तटरक्षक जहाज़ को सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम दिया है।[6] भारतीय डाकतार विभाग ने ६ अगस्त १९७६ को सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में २५ पैसे का एक डाक-टिकट जारी किया है।
कृतियाँ
कहानी संग्रह
बिखरे मोती (१९३२)
उन्मादिनी (१९३४)
सीधे साधे चित्र (१९४७)
कविता संग्रह
मुकुल
त्रिधारा
प्रसिद्ध पंक्तियाँ
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे। मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
मुझे छोड़ कर तुम्हें प्राणधन सुख या शांति नहीं होगी यही बात तुम भी कहते थे सोचो, भ्रान्ति नहीं होगी।
झाँसी की रानी
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जीवनी
'मिला तेज से तेज
Wednesday, August 12, 2020
12 AUGUST - NATIONAL LIBRARIAN DAY (Birthday of Dr. S R RANGANATHAN)
Father of Library Science
Siyali Ramamitra Ranganathan (12 August 1892 – 27 September 1972) He was a librarian and mathematician India. His most notable contributions to the field were his five laws of library science and the development of the first major faceted classification system, the colon classification.He is considered to be the father of library science, documentation, and information science in India and is widely known throughout the rest of the world for his fundamental thinking in the field. His birthday is observed every year as the National Librarian's Day in India.He was a university librarian and professor of library science at Banaras Hindu University (1945–47) and professor of library science at the University of Delhi (1947–55). The last appointment made him director of the first Indian school of librarianship to offer higher degrees. He was president of the Indian Library Association from 1944 to 1953. In 1957 he was elected an honorary member of the International Federation for Information and Documentation (FID) and was made a vice-president for life of the Library Association of Great Britain.