Wednesday, January 26, 2022

100 DAYS READING CAMPAIGN

b>Union Education Minister Dharmendra Pradhan has launched a 100-day Reading Campaign ‘Padhe Bharat’ to improve learning levels of students, according to officials. “Children studying in Balvatika to class 8 will be part of this campaign. The reading campaign will be organised for 100 days (14 weeks) starting from January 1 to April 10, 2022. The reading campaign aims to have the participation of all stakeholders at national and state level including children, teachers, parents, community, educational administrators etc
OBJECTIVES OF 100 DAYS READING CAMPAIGN # To achieve sustainable development goel effective communication and involved learners # To promote reading habit among students right from balvatika # To make childrens independent readers and life long learners # To utilise libraries at an optimum extentTarget Group: Children studying in Balvatika to Grade VIII will be part of this campaign. They will further be categorised in three groups class wise: TARGET GROUP Group I Balvatika to Grade II Group II Grade III to Grade V Group III Grade VI to Grade VIII

Monday, January 24, 2022

नेताजी सुभाष् चंद्र बोस जीवनी

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। बोस के पिता का नाम 'जानकीनाथ बोस' और माँ का नाम 'प्रभावती' था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वक़ील थे। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी, जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र उनकी नौवीं संतान और पाँचवें बेटे थे। अपने सभी भाइयों में से सुभाष को सबसे अधिक लगाव शरदचंद्र से था।
आरम्भिक जीवन : नेताजी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई। तत्पश्चात् उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई, और बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा (इण्डियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने बोस को इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। अँग्रेज़ी शासन काल में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत कठिन था किंतु उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया। कटक के प्रोटेस्टेण्ट यूरोपियन स्कूल से प्राइमरी शिक्षा पूर्ण कर 1909 में उन्होंने रेवेनशा कॉलेजियेट स्कूल में दाखिला लिया। कॉलेज के प्रिन्सिपल बेनीमाधव दास के
व्यक्तित्व का सुभाष के मन पर अच्छा प्रभाव पड़ा। मात्र पन्द्रह वर्ष की आयु में सुभाष ने विवेकानन्द साहित्य का पूर्ण अध्ययन कर लिया था। 1915 में उन्होंने इण्टरमीडियेट की परीक्षा बीमार होने के बावजूद द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की। 1916 में जब वे दर्शनशास्त्र (ऑनर्स) में बीए के छात्र थे किसी बात पर प्रेसीडेंसी कॉलेज के अध्यापकों और छात्रों के बीच झगड़ा हो गया सुभाष ने छात्रों का नेतृत्व सम्हाला जिसके कारण उन्हें प्रेसीडेंसी कॉलेज से एक साल के लिये निकाल दिया गया और परीक्षा देने पर प्रतिबन्ध भी लगा दिया। 49वीं बंगाल रेजीमेण्ट में भर्ती के लिये उन्होंने परीक्षा दी किन्तु आँखें खराब होने के कारण उन्हें सेना के लिये अयोग्य घोषित कर दिया गया। किसी प्रकार स्कॉटिश चर्च कॉलेज में उन्होंने प्रवेश तो ले लिया किन्तु मन सेना में ही जाने को कह रहा था। खाली समय का उपयोग करने के लिये उन्होंने टेरीटोरियल आर्मी की परीक्षा दी और फोर्ट विलियम सेनालय में रँगरूट के रूप में प्रवेश पा गये। फिर ख्याल आया कि कहीं इण्टरमीडियेट की तरह बीए में भी कम नम्बर न आ जायें सुभाष ने खूब मन लगाकर पढ़ाई की और 1919 में बीए (ऑनर्स) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। कलकत्ता विश्वविद्यालय में उनका दूसरा स्थान था। पिता की इच्छा थी कि सुभाष आईसीएस बनें किन्तु उनकी आयु को देखते हुए केवल एक ही बार में यह परीक्षा पास करनी थी। उन्होंने पिता से चौबीस घण्टे का समय यह सोचने के लिये माँगा ताकि वे परीक्षा देने या न देने पर कोई अन्तिम निर्णय ले सकें। सारी रात इसी असमंजस में वह जागते रहे कि क्या किया जाये। आखिर उन्होंने परीक्षा देने का फैसला किया और 15 सितम्बर 1919 को इंग्लैण्ड चले गये। परीक्षा की तैयारी के लिये लन्दन के किसी स्कूल में दाखिला न मिलने पर सुभाष ने किसी तरह किट्स विलियम हाल में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान की ट्राइपास (ऑनर्स) की परीक्षा का अध्ययन करने हेतु उन्हें प्रवेश मिल गया। इससे उनके रहने व खाने की समस्या हल हो गयी। हाल में एडमीशन लेना तो बहाना था असली मकसद तो आईसीएस में पास होकर दिखाना था। सो उन्होंने 1920 में वरीयता सूची में चौथा स्थान प्राप्त करते हुए पास कर ली। राजनीतिक जीवन : आजाद हिंद फौज की स्थापना - द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, सितम्बर 1939, को सुभाष चन्द्र बोस ने यह तय किया कि वो एक जन आंदोलन आरंभ करेंगे। वो पुरे भारत में लोगों को इस आन्दोलन के लिए प्रोत्साहन करने लगे और लोगों को जोड़ना भी शुरू किया। इस आन्दोलन की शुरुवात की भनक लगते ही ब्रिटिश सरकार को सहन नहीं हुआ और उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस को जेल में डाल दिया। उन्होंने जेल में 2 हफ़्तों तक खाना तक नहीं खाया। खाना ना खाने के कारण जब उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा तो हंगामे के डर से उन्हें घर में नज़रबंद कर के रखा गया।
साल 1941 में, उनके इस House-arrest के दौरान सुभाष ने जेल से भागने की एक योजना बनाई। वो पहले गोमोह, बिहार गए और वहां से वो सीधा पेशावर(जो की अब पाकिस्तान का हिस्सा है) चले गए। उसके बाद वो जर्मनी चले गए और वहां हिटलर(Hitler) से मिले। सुभाष चन्द्र बोस बर्लिन में अपनी पत्नी एमिली शेंकल Emilie Schenkl के साथ रहते थे। 1943 में बोस ने दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी आर्मी को तैयार किया जिका नाम उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी (आजाद हिंद फौज) रखा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस सर्वकालिक नेता थे, जिनकी ज़रूरत कल थी, आज है और आने वाले कल में भी होगी. वह ऐसे वीर सैनिक थे, इतिहास जिनकी गाथा गाता रहेगा. उनके विचार, कर्म और आदर्श अपना कर राष्ट्र वह सब कुछ हासिल कर सकता है, जिसका वह हक़दार है. सुभाष चंद्र बोस स्वतंत्रता समर के अमर सेनानी, मां भारती के सच्चे सपूत थे। नेताजी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के उन योद्धाओं में से एक थे, जिनका नाम और जीवन आज भी करोड़ों देशवासियों को मातृभमि के लिए समर्पित होकर कार्य करने की प्रेरणा देता है।उनमें नेतृत्व के चमत्कारिक गुण थे, जिनके बल पर उन्होंने आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान संभाल कर अंग्रेज़ों को भारत से निकाल बाहर करने के लिए एक मज़बूत सशस्त्र प्रतिरोध खड़ा करने में सफलता हासिल की थी। नेताजी के जीवन से यह भी सीखने को मिलता है कि हम देश सेवा से ही जन्मदायिनी मिट्टी का कर्ज़ उतार सकते हैं। उन्होंने अपने परिवार के बारे में न सोचकर पूरे देश के बारे में सोचा। नेताजी के जीवन के कई और पहलू हमे एक नई ऊर्जा प्रदान करते हैं। वे एक सफल संगठनकर्ता थे। उनकी बोलने की शैली में जादू था और उन्होंने देश से बाहर रहकर ‘स्वतंत्रता आंदोलन’ चलाया। नेताजी मतभेद होने के बावज़ूद भी अपने साथियो का मान सम्मान रखते थे। उनकी व्यापक सोच आज की राजनीति के लिए भी सोचनीय विषय है। तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा ! मित्रों ! बारह महीने पहले “ पूर्ण संग्रहण ”(total mobilization) या “परम बलिदान ”(maximum sacrifice) का एक नया कार्यक्रम पूर्वी एशिया में मौजूद भारतीयों के समक्ष रखा गया था. आज मैं आपको पिछले वर्ष की उपलब्धियों का लेखा -जोखा दूंगा और आपके सामने आने वाले वर्ष के लिए हमारी मांगें रखूँगा. लेकिन ये बताने से पहले, मैं चाहता हूँ कि आप इस बात को समझें कि एक बार फिर हमारे सामने स्वतंत्रता हांसिल करने का स्वर्णिम अवसर है.अंग्रेज एक विश्वव्यापी संघर्ष में लगे हुए हैं और इस संघर्ष के दौरान उन्हें कई मोर्चों पर बार बार हार का सामना करना पड़ा है. इस प्रकार दुश्मन बहुत हद्द तक कमजोर हो गया है, स्वतंत्रता के लिए हमारी लड़ाई आज से पांच साल पहले की तुलना में काफी आसान हो गयी है. इश्वर द्वारा दिया गया ऐसा दुर्लभ अवसर सदी में एक बार आता है.इसीलिए हमने प्रण लिया है की हम इस अवसर का पूर्ण उपयोग अपनी मात्र भूमि को अंग्रेजी दासता से मुक्त करने के लिए करेंगे. मैं हमारे इस संघर्ष के परिणाम को लेकर बिलकुल आशवस्थ हूँ, क्योंकि मैं सिर्फ पूर्वी एशिया में मौजूद 30 लाख भारतीयों के प्रयत्नों पर निर्भर नहीं हूँ. भारत के अन्दर भी एक विशाल आन्दोलन चल रहा है और हमारे करोडो देशवासी स्वतंत्रता पाने के लिए कष्ट सहने और बलिदान देने को तैयार हैं। मैं हमारे इस संघर्ष के परिणाम को लेकर बिलकुल आशवस्थ हूँ, क्योंकि मैं सिर्फ पूर्वी एशिया में मौजूद 30 लाख भारतीयों के प्रयत्नों पर निर्भर नहीं हूँ। भारत के अन्दर भी एक विशाल आन्दोलन चल रहा है और हमारे करोडो देशवासी स्वतंत्रता पाने के लिए कष्ट सहने और बलिदान देने को तैयार हैं। सुभाष चंद्र बोस के रहस्य पर किताब लिख चुके मिशन नेताजी के अनुज धर का कहना है कि भारत सरकार सब कुछ जानती है, लेकिन वह जान-बूझकर रहस्य से पर्दा नहीं उठाना चाहती। उन्होंने कहा कि इसीलिए सरकार ने सूचना के अधिकार के तहत दायर उनके आवेदन पर नेताजी से जुड़ी जानकारी उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया। नेताजी के बारे में जानने के लिए जितनी भी जांच हुईं, उन सबमें कुछ न कुछ ऐसा आया, जिससे कहानी और उलझती चली गई। विचार : 1. तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा| 2. याद रखिये – सबसे बड़ा अपराध, अन्याय को सहना और गलत व्यक्ति के साथ समझौता करना हैं| 3. यह हमारा फर्ज हैं कि हम अपनी आजादी की कीमत अपने खून से चुकाएं| हमें अपने त्याग और बलिदान से जो आजादी मिले, उसकी रक्षा करनी की ताकत हमारे अन्दर होनी चाहिए| 4. मेरा अनुभव हैं कि हमेशा आशा की कोई न कोई किरण आती है, जो हमें जीवन से दूर भटकने नहीं देती| 5. जो अपनी ताकत पर भरोसा करता हैं, वो आगे बढ़ता है और उधार की ताकत वाले घायल हो जाते हैं| 6. हमारा सफर कितना ही भयानक, कष्टदायी और बदतर हो सकता हैं लेकिन हमें आगे बढ़ते रहना ही हैं| सफलता का दिन दूर हो सकता हैं, लेकिन उसका आना अनिवार्य ही हैं| नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वाधीनता संग्राम के उन योद्धाओं में से एक हैं जिनका नाम और जीवन आज भी करोड़ों देशवासियों को मातृभमि के लिए समर्पित होकर कार्य करने की प्रेरणा देता है|